Preamble to Indian Constitution | भारतीय संविधान की प्रस्तावना by Ritesh Yadav
भारतीय संविधान को पढ़ने के लिए या जानने के लिए आप प्रस्तावना को पढ़ सकते हैं, भारतीय संविधान के निर्माणकर्ता एक अखंड विद्वान थे जिन्होंने भारतीय संविधान का निर्माण किया जिसपर किसी अन्य देश का कोई दबाव नहीं हैं all india free test पर संविधान को पढ़ सकते हैं। Indian Constitution (भारतीय संविधान) का यह एक महत्वपूर्ण भाग है जिससे प्रश्न पूछे ही जाते है. अगर आप अपनी परीक्षा की बेहतर तैयारी करना चाहते हैं तो यह नोट्स आपके लिए (SSC, BANK, RAILWAY, GROUP D, CHSL, UPSC, PET, VDO, LEKHPAL, UPSSSC, एवं अन्य परीक्षा) अति आवश्यक है, पहले आप भारतीय संविधान की थ्योरी को पढ़ेंगे इसके बाद उससे आने वाले महत्वपूर्ण प्रश्न को FAQs में दिया जायेगा।
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प्रस्तावना क्या है – What is a Preamble ?
प्रस्तावना भारतीय संविधान का का एक दस्तावेज (document) है जिसमें यह बताया गया है की संविधान के स्रोत क्या हैं, संविधान की विशेषता, उद्देश्य, निर्माण के पीछे का इतिहास, अंगिकरण की तिथि क्या है। भारत के संविधान में क्या क्या है और इसकी शक्ति क्या है सारी बातें प्रस्तावना में वर्णित हैं।
“हम भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न,
समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक, गणराज्य बनाने के लिए
तथा उसके समस्त नागरिकों को :
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय,
विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता,
प्रतिष्ठा और अवसर की समता
प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में
व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की
एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए
दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख
26 नवंबर, 1949 ई. (मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हजार छह विक्रमी) को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।”
- प्रस्तावना से तात्पर्य संविधान में बनाए गए अधिनियम को समझना है।
- प्रस्तावना का प्रारूप अमेरिका के संविधान से और प्रस्तावना की भाषा आस्ट्रेलिया के संविधान से लिया गया है।
- प्रस्तावना का प्रारूप 13 दिसंबर 1946 में पंडित जवाहरलाल नेहरु के द्वारा संविधान सभा में पेश किया गया था और संविधान सभा के द्वारा इससे 22 जनवरी 1947 को स्वीकार किया गया था।
Note –
संविधान की प्रस्तावना में अब तक सिर्फ एक बार संशोधन किया गया है यह 42वां संविधान संशोधन 1976 था जिसे mini constitution (लघु संविधान) कहा जाता है।
इस संशोधन के द्वारा संविधान में तीन शब्द जोड़े गए थे –
- समाजवादी
- पंथनिरपेक्ष
- अखंडता
प्रस्तावना में दिए मूल शब्दों के अर्थ –
- हम भारत के लोग – We the people of India-
हम भारत के लोग से तात्पर्य यह है कि भारत एक प्रजातांत्रिक देश है एवं भारत के लोग ही सब कुछ हैं अर्थात सर्वोच्च संप्रभु। भारतीय जनता ही संविधान का आधार है या हम कह सकते हैं कि यहां की जनता को भारतीय संविधान समर्पित किया गया है।
- सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न –
इसका साफ अर्थ है कि भारत के बाहरी या आंतरिक मामले पर कोई भी देश निर्णय नहीं लेगा अर्थात भारत एक स्वतंत्र देश है जो सभी मुद्दों पर खुदा निर्णय ले सकता है।
- समाजवादी –
समाजवादी शब्द का अर्थ यह है कि ‘ऐसी संरचना जिसमें उत्पादन की वस्तुओं का उपयोग सामाजिक हित में किया जाएगा।
- पंथनिरपेक्ष –
भारत का अपना कोई विशेष धर्म नहीं होगा, भारत में सभी धर्म को मानने वाले लोग निवास करते हैं इसलिए भारत को पंथनिरपेक्ष कहा गया है।
- लोकतांत्रिक –
लोकतांत्रिक से आशय यह है कि जनता का शासन अर्थात प्रधान पद का निर्वाचन एक निश्चित समय के लिए किया जाएगा और प्रधान पद पर बैठने वाला व्यक्ति जनता के प्रति उत्तरदायी होगा।
- गणतंत्र –
गणतंत्र या गणराज्य से यह आशय से है कि यहां का राष्ट्र अध्यक्ष एक निश्चित निर्वाचन समय के अनुसार ही पद पर रहेगा यह पद वंशानुगत नहीं होगा अर्थात बिना निर्वाचन के कोई भी व्यक्ति वंशानुगत पद पर नहीं रह सकता है।
- स्वतंत्रता –
स्वतंत्रता से या तात्पर्य है कि भारतीय व्यक्ति को एक निश्चित भारतीय सीमा के अंदर ही स्वतंत्रता प्राप्त है जिसका साफ अर्थ यह कि यहां की जनता को स्वतंत्रता इसलिए दिया गया है कि वह सामान्य अवसर का लाभ उठा सके जिससे उसका और राष्ट्र का विकास निहित हो।
- न्याय –
न्याय शब्द का उल्लेख भारतीय संविधान में तीन प्रकार से किया गया है सामाजिक न्याय, राजनीतिक न्याय और आर्थिक न्याय।
सामाजिक न्याय का यह अर्थ है कि मानव मानव के बीच जाति या धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा और सभी व्यक्ति को समान न्याय एवं समान अवसर प्रदान किया जाएगा।
राजनीतिक न्याय से क्या अभिप्राय है कि सभी व्यक्ति को एक समान न्याय दिया गया है कि वह किसी भी ऑफिस या दफ्तर यहां सरकार तक अपनी बात को पहुंचा सके।
आर्थिक न्याय से यह तात्पर्य है कि उत्पादन की सभी वस्तुओं पर सभी व्यक्ति को समान रूप से वितरित किया जाए जिससे किसी एक व्यक्ति के हाथों में सब कुछ केंद्रित ना हो पाए।
- समता –
समता का अर्थ है सभी व्यक्ति को समान अवसर प्रदान करना किसी भी प्रकार से भेदभाव ना करना।
- बंधुत्व –
प्रस्तावना में बंधुत्व शब्द का यह आशय है कि भाईचारा बनाए रखना। इसमें प्रति व्यक्ति का सम्मान एवं एकता और अखंडता को बनाए रखने की बात कही गई है ।
उद्देशिका – संविधान का भाग होने पर विवाद
बेरुबारी यूनियन मामला 1960
बेरुबारी यूनियन मामला में उच्चतम न्यायालय ने मत दिया की प्रस्तावना संविधान का अंग नहीं है।
गोलकनाथ मामला 1967
इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने मूल अधिकारों में संशोधन पर रोक लगा दी और प्रस्तावना संविधान निर्माताओं के मन की कुंजी है यह बात कहा गया ।
केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य 1973
उच्चतम न्यायालय ने अपने पूर्व के निर्णय को निरस्त कर दिया और एक नया मतिया दिया की प्रस्तावना संविधान का भाग है इसलिए प्रस्तावों में संशोधन का अधिकार संसद को है।
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