दिल्ली सल्तनत का इतिहास
दिल्ली सल्तनत का इतिहास मध्यकालीन भारत का इतिहास है जिसकी शुरुआत 1206 में हुई और यह 1526 तक रहा. दिल्ली सल्तनत की स्थापना कुतुबुद्दीन ऐबक ने किया. कुतुबुद्दीन ऐबक गुलाम वंश या ममलूक वंश का शासक था.
दिल्ली सल्तनत के इतिहास को पढ़ने से पहले हमें उससे पूर्व का इतिहास जान लेना चाहिए ऐसा इसलिए क्योंकि दिल्ली सल्तनत के इतिहास की शुरुआत तुर्क साम्राज्य के प्रथम शासक से होती है.
इसके दो प्रमुख बिंदु हैं –
- भारत पर तुर्क आक्रमण
- भारत में तुर्क साम्राज्य की स्थापना
भारत पर तुर्क आक्रमण –
977 ई. में सुबुक्तगीन ने गजनी पर अपना पूर्ण अधिकार स्थापित कर लिया सुबुक्तगीन, अलप्तगिन का दामाद था जो गजनी में तुर्क साम्राज्य को स्थापित किया था.
भारत पर पहला तुर्क मुसलमान आक्रमणकारी सुबुक्तगीन था सुबुक्तगीन से हिंदू शासक जयपाल ने दो बार युद्ध किया और वह दोनों बार हार जाता है जिससे जयपाल अपनी आत्महत्या कर लेता है.
Dilli Saltnat in Hindi | दिल्ली सल्तनत सम्पूर्ण इतिहास
महमूद गजनवी –
सुबुक्तगीन का उत्तराधिकारी उसका पुत्र महमूद गजनवी बना महमूद गजनबी इसलिए प्रसिद्ध है क्योंकि इस ने भारत पर 17 बार आक्रमण किया और लूट किया तथा मंदिरों को तोड़ा.
महमूद गजनबी सुल्तान की उपाधि धारण करने वाला पहला शासक बन गया और इसने बगदाद के खलीफा से यामीन उद दौला और अमीन उल मिल्लाह की उपाधि धारण की.
महमूद गजनवी का भारत आने का मुख्य उद्देश्य –
- इस्लाम धर्म का प्रचार करना
- धन प्राप्त करना था
- महमूद गजनवी ने भारत पर 17 बार आक्रमण किया महमूद गजनबी का पहला आक्रमण 1001 में किया.
- महमूद गजनबी का अंतिम आक्रमण 1027 में था
- मोहम्मद गजनबी का दूसरा आक्रमण
महमूद गजनवी ने अपना दूसरा आक्रमण हिंदू शासक जयपाल पर किया और इसमें जयपाल की बुरी तरह से हार होती है इस हार से जयपाल इतना दुखी हो गया कि उसने आत्महत्या कर ली. 1018 में महमूद गजनबी ने कन्नौज पर आक्रमण किया और मथुरा के केशव मंदिर को भी तोड़वा दिया.
इतिहासकारों ने ऐसा बताया है कि महमूद गजनबी 50000 से भी अधिक हिंदू व ब्राह्मणों की हत्या भी की थी.
इतिहासकार एवं लेखक अलरुबनी महमूद गजनबी के काल में भारत आया था, अलरुबनी की प्रसिद्ध पुस्तक किताब उल हिंद थी, फिरदौसी की प्रसिद्ध पुस्तक शाहनामा है, महमूद गजनवी जिस समय सोमनाथ मंदिर को लूट कर गजनी जा रहा था जाटों ने उस पर आक्रमण कर दिया और कुछ धन को लूट लिया, 1030 में महमूद गजनबी की मृत्यु हो गई.
मोहम्मद गौरी
भारतीय इतिहास में मोहम्मद गौरी एक प्रसिद्ध शासक बना जिसने भारत के प्रसिद्ध राजा पृथ्वी राज चौहान से दो बार युद्ध किया.
युद्ध | शासक |
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1191- तराइन का प्रथम युद्ध | मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच |
1192-तराइन का द्वितीय युद्ध | मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच |
तराइन के प्रथम युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की जीत होती है लेकिन तराइन का द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की हार हो जाती है और मोहम्मद गौरी के सैनिकों द्वारा हत्या कर दी जाती है.
1194 ई. चंदावर का प्रसिद्ध युद्ध मोहम्मद गौरी और जयचंद के बीच हुई जयचंद की हार के बाद उसकी हत्या कर दी जाती है. मोहम्मद गजनबी जिस समय गजनी की ओर लौट रहा था उस समय वह कुतुबुद्दीन ऐबक को पूरे प्रांत दे दिए, 1205 में वह भारत फिर से आता है और मोहम्मद गोरी कोक्खरो की हत्या कर देता है और जब वह गजनी वापस लौट रहा था तो दमयक नामक स्थान पर मोहम्मद गौरी की बेरहमी से हत्या कर दी जाती है हालांकि इसकी सबको गजनी में दफनाया गया.
उम्मीद है ऊपर की सारी जानकारी आपको समझ में आ गई होगी जो अब तक हमने आप को समझाने की कोशिश की है, अब चलते हैं दिल्ली सल्तनत की ओर
दिल्ली सल्तनत 1206-1526
दिल्ली सल्तनत पर कुल पांच वंश के शासकों ने शासन किया
दिल्ली सल्तनत का संस्थापक कुतुबुद्दीन ऐबक था. दिल्ली सल्तनत पर लगभग 320 वर्षों तक का मुस्लिम शासकों ने अपना अधिकार बनाया था.
दिल्ली सल्तनत के प्रमुख वंश एवं शासक
दिल्ली सल्तनत शासक वंश | शासन समय |
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गुलाम वंश या ममलूक वंश | 1206-1290 ई. |
खिलजी वंश | 1290-1320 ई. |
तुगलक वंश | 1320-1414 ई. |
सैयद वंश | 1414-1451 ई. |
लोदी वंश | 1451-1526 ई. |
गुलाम वंश 1206-1290
गुलाम वंश का संस्थापक कुतुबुद्दीन ऐबक माना जाता है गुलाम वंश में मुख्य रूप से तीन शासकों ने शासन किया
1. कुतुबुद्दीन ऐबक
2. इल्तुतमिश
3. बलबन
शासक | शाशन समय |
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1. कुतुबुद्दीन ऐबक | 1206-1210 ई. |
2. इल्तुतमिश | 1210-1236 ई. |
3. रजिया सुल्तान | 1236-1239 ई. |
4. बहराम शाह | 5. अलाउद्दीन मसूूद शाह |
6. बलबन 1266-1286 ई. |
कुतुबुद्दीन ऐबक-
कुतुबुद्दीन ऐबक (अर्थ- चंद्रमा का देवता) बचपन में अपने परिवार से बिछड़ने के कारण इसे एक काजी के द्वारा पाला जाता है परंतु काजी की मृत्यु हो जाने पर उसके पुत्रों ने इसे एक व्यापारी को बेच दिया था लेकिन उस व्यापारी से कुतुबुद्दीन ऐबक को महमूद गजनबी ने खरीद लिया था.
मोहम्मद गौरी कुतुबुद्दीन ऐबक से इतना प्रभावित हुआ कि गजनी लौटते समय उसने सभी प्रांतों को को कुतुबुद्दीन ऐबक के हवाले कर दिया, कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपना राज्याभिषेक 1206 में लाहौर में किया और गुलाम वंश की स्थापना की, इतिहासकार मिन्हाज ने कुतुबुद्दीन ऐबक को हातिम दुतीय की संज्ञा दी क्योंकि यह बहुत दान करता रहता था इसलिए कुतुबुद्दीन ऐबक को लाख बख्श भी कहा जाने लगा यह धनुर्विद्या और कुरान का ज्ञाता था इसलिए इसे कुरान खान भी कहा गया.
कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली में विष्णु मंदिर के स्थान पर ‘कुवत उल इस्लाम’ और अजमेर में एक संस्कृत विद्यालय को तोड़कर बख्तियार काकी की याद में ‘ढाई दिन का झोपड़ा’ बनवाया. कुतुबुद्दीन ऐबक के मृत्यु चौगान खेलते समय घोड़े से गिरने के कारण हुई.
- कुतुबुद्दीन ऐबक का मकबरा कहां है – लाहौर
कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के बाद आराम शाह दिल्ली की गद्दी पर बैठा परंतु इल्तुतमिश से उसका संघर्ष हुआ और तो तुम इतने आराम शाह की हत्या कर दी और खुद गद्दी पर बैठ गया.
- दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक कौन है – इल्तुतमिश
इल्तुतमिश –
इल्तुतमिश ने कोक्खरो के साथ युद्ध में मोहम्मद गौरी का साथ दिया था इसलिए यह उसका विश्वास पात्र बन गया था इसने राजधानी दिल्ली में बनाई थी.
बगदाद के खलीफा ने तो तुम इसको सुल्तान एक आजम की उपाधि से सम्मानित किया एक प्रमाण पत्र दिया कि सुल्तान का पुत्र ही सुल्तान होगा. इल्तुतमिश की मृत्यु 1236 में हो गई.
इल्तुतमिश पहला ऐसा तुर्क शासक था जिसने शुद्ध अरबी के सिक्के तांबे का जीतल एवं चांदी का टका चलवाया.
इल्तुतमिश ने इक्ता प्रथा की शुरुआत की इसमें वेतन के बदले भूमि देता था 40 सरदारों का एक संगठन बनाया जिससे हुआ पूरी व्यवस्था लागू कर सके.
- इल्तुतमिश ने भारत में पहला मकबरा बनवाया और कुतुबुद्दीन ऐबक के कार्य को पूरा किया.
- बदायूं की जामा मस्जिद का निर्माण इल्तुतमिश ने किया.
- अतारकीन के दरवाजे का निर्माण इल्तुतमिश ने किया.
- अजमेर में एक मस्जिद का निर्माण करवाया.
Q. इल्तुतमिश का मकबरा कहां पर स्थित है – दिल्ली में
Q. कुतुबुद्दीन ऐबक का मकबरा कहां स्थित है – लाहौर में
Q. महमूद गजनवी ने भारत पर कितनी बार आक्रमण किया – 17 बार
Q. अजमेर में स्थित “ढाई दिन की झोपड़ेा” का निर्माण किसने करवाया – कुतुबुद्दीन ऐबक ने
Q. तराइन का प्रथम युद्ध कब हुआ था –1191
Q. तराइन का द्वितीय युद्ध कब हुआ था –1192
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