Goa and Pondicherry merge in India : इस लेख में गोवा व पांडिचेरी का भारत में विलय की पूरी घटना का वर्णन विस्तारपूर्वक किया गया है। साम्राज्यवाद व उपनिवेशवाद का विरोध स्वतंत्र भारत की प्रमुख निति थी. इसका स्वाभाविक परिणाम था कि भारत अपनी उस जमीन पर फिर से जो दावा करता जो विदेशियों के कब्जे में थी। अंग्रेजो के चले जाने के बाद भी गोवा पर पुर्तगाल का कब्जा था जबकि पांडिचेरी (वर्तमान पुदुच्चेरी) पर फ़्रांस का आधिपत्य था और इसे कैसे भी खत्म करना था। Goa and Pondicherry merge in India के बारे में जानने के लिये इसे अंत तक पढ़ें।
गोवा पांडिचेरी का भारत में विलय | Goa and Pondicherry merge in India Hindi
भारत की स्वतंत्रता के तुरंत बाद इन क्षेत्रों (गोवा व पांडिचेरी) के लोगों ने अपनी आजादी व भारत में विलय की मांग प्रारम्भ की और इसके लिए आंदोलन प्रारम्भ किये. 1954 ई में पांडिचेरी में माहौल बहुत तनावपूर्ण हो गया. भारत में विलय के लिए व्यापक आंदोलन उठ खड़ा हुआ.
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मद्रास अर्थात वर्तमान चेन्नई में फ़्रांसिसी दूतावास के सामने हर रोज प्रदर्शन होने लगे. नवम्बर 1954 में फ़्रांस ने पांडिचेरी को भारत को सौंप दिया, जिसका लोगों ने व्यापक स्वागत भी किया. वर्ष 1955 के गणतंत्र दिवस में पहली बार राजपथ पर पांडिचेरी की एक झाँकी निकाली गई. इस तरह पांडिचेरी का शांतिपूर्ण रूप से भारत में विलय सम्पन्न हो गया।
गोवा का इतिहास व भारत में विलय (History of Goa and Pondicherry merger in India)
इधर पुर्तगाली गोवा विलय की बात पर ध्यान नही दे रहे थे. वे गोवा को तब तक अपने पास रखना चाहते थे, जब तक ऐसा संभव हो. गोवा के पुर्तगाली शासक तानाशाह ओलिवीरा सलाज़ार ने गोवा को पूरब की पुरातन धरती पर पश्चिम का प्रकाश व पुर्तगाली अन्वेषण के एक प्रतीक बताते हुए खाली करने से मना कर दिया.
गोवा के अलावा दमन, दादर व नगर हवेली भी पुर्तगाल के अधीन थी. वर्ष 1954-55 में जन आंदोलन के परिणामस्वरूप दमन व दादरा नगर हवेली पर नियंत्रण हो गया.
गोवा में बड़े पैमाने पर आंदोलनकारियों को जेल में डाल दिया गया. एक दशक तक भारत पुर्तकाल से अनुनय करता रहा. आखिर 1961 में भारतीय सेना को गोवा मुक्ति हेतु भेजा गया।
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ओपरेशन विजय के नाम से दो दिन के अंदर ही सेना का गोवा पर कब्जा हो गया. स्थानीय जनता ने सेना का पूरा साथ दिया. फलत गोवा के पुर्तगाली गर्वनर ने बिना शर्त समर्पण कर दिया. इस तरह 1961 ई के अंत में गोवा का भारत में विलय हुआ.
उल्लेखनीय है कि नेहरु सरकार पर काफी समय से जनसंघ स्वतंत्र पार्टी आदि ने गोवा मुक्ति का दवाब बनाए रखा था, अतः सरकार के लिए यह आवश्यक कार्यवाही थी.
पांडिचेरी का इतिहास
चौथी शताब्दी के समय पांडिचेरी कांचीपुरम के पल्लव साम्राज्य के अंतर्गत आती थी। लेकिन चौथी शताब्दी के बाद की शताब्दियों में पांडिचेरी साम्राज्य के ऊपर दक्षिण के राजवंशियों का कब्जा हो गया था। 10 वीं शताब्दी के प्रारंभ में पांडिचेरी पर तमिलनाडु में रहने वाले चोलो (चोल संप्रदाय के लोग) ने आक्रमण करके उसे अपने अंतर्गत ले लिया था।
1673 के समय जब फ्रांसीसी भारत आए तब फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने उद्योग केंद्र की स्थापना पांडिचेरी में की। फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा उठाया गया यह कदम बहुत ही लाभकारी सिद्ध हुआ और एक अच्छे समझौते के रूप में सामने आया।
फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी के पांडिचेरी में व्यापार बढ़ाने के बाद डच और ब्रिटिश कंपनियां भी पांडिचेरी में अपने व्यापार को बढ़ाना चाहती थी। जिसके कारण 1693 में डच ने पांडिचेरी पर आक्रमण करके उसे अपने अधीन कर लिया था।
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कुछ सालों तक पांडिचेरी पर राज कर लेने के बाद 1699 में राइसविक की संधि के बाद डचों ने पांडिचेरी वापस फ्रांसिसीयों को दे दी। जिसके बाद पांडिचेरी पर फ्रांस का कब्जा हो गया और काफी लंबे समय तक फ्रांस ने पांडिचेरी पर राज किया।
पांडिचेरी विलय दिवस
जब भारत ब्रिटिश साम्राज्य का गुलाम था तो उस समय पांडिचेरी फ्रांसीसी कंपनी के अधीन थी लेकिन जब भारत को आजादी मिली तब पांडिचेरी के लोगों ने भी अपनी आजादी के लिए आंदोलन किया जिसके कारण मजबूरन नवंबर, 1954 में फ्रांसीसियों ने पांडिचेरी को भारत को सौंप दिया।
इसीलिए 1 नवंबर के दिन प्रत्येक वर्ष पांडिचेरी विलय दिवस मनाया जाता है। फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी के कब्जे में 300 वर्षों तक रहने के बाद भारत में पांडिचेरी के विलय की खुशी में इस दिन को मनाया जाता है।
बता दें भारत के अंतर्गत सम्मिलित हो जाने के बाद भी आज पांडिचेरी में कुछ स्थानों पर फ्रांसीसी संस्कृति की झलक देखने को मिलती है।
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निष्कर्ष :- हम आशा करते हैं कि यह लेख आपको पसंद आया होगा। इस लेख में गोवा व पांडिचेरी का भारत में विलय का इतिहास (Goa and Pondicherry merge in India) के बारे में जाना। ऐसी ही जानकारी के लिये यहां विजिट करते रहें। धन्यवाद।।