World Heritage Site Ramappa Temple : Telanagana | Dholavira Gujrat in UNESCO list
भारत के रामप्पा मंदिर को विश्व की धरोहर में शामिल किया गया है। यह भारत का 39वां विश्व विरासत स्थल (World Heritage Center) है। रामप्पा मंदिर को विश्व विरासत समिति के 44वें सत्र में शामिल किया गया इसका आयोजन ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से हुआ। विश्व धरोहर की 44वीं बैठक चीन के फुजाओ (Fuzhou) में किया गया इसमें भारत के रामप्पा मंदिर की विशेषता को देखकर शामिल किया गया।
Ramappa And Dholavira in World Heritage Site by Ritesh Yadav | Allindiafreetest
रामपप्पा मंदिर पालमपेट (तेलंगाना) में स्थित है |इस मंदिर के मुख्य देवता जिनकी पूजा की जाती है वह रामलिंगेश्वर स्वामी हैं। हालांकि इस मंदिर का निर्माण 13वीं शताब्दी में काकतीय राजा गणपति देव के सेना पति ने करवाया था लेकिन इस मंदिर को बनाने वाले वस्तुकार रामप्पा के नाम पर रखा गया था इस मंदिर को अन्य नामों से भी जाना जाता है। कहीं कहीं इसे रुद्रेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
रामप्पा मंदिर की विशेषता
यह मंदिर द्रविण वास्तुकला की शैली में बनाया गया है तथा यह मंदिर काकतीय राजाओं के मूर्तिकला प्रेमी होने एवं उनके प्रभावों को दर्शाता है। इस मंदिर को 6 फीट ऊँचे एक तारा नुमा संरचना के ऊपर बनाया गया है जो तैरता हुआ प्रतीत होता है।
इसे भी पढ़ें – 100 GK Question with Answer
निर्माण में प्रयोग की गयी वस्तुएं
इस मंदिर के फर्श ग्रेनाइट से बनाये गये हैं तथा इसके खम्भे बेसाल्ट से बनाये गए हैं इतना ही नहीं इस मंदिर की दीवारों, स्तम्भों तथा छतों पर एक जटिल नक्कासी के जरिये सजावट की गयी है जो अत्यंत मनमोहक लगती हैं। आपको बता दें कि एक यूरोपीय यात्री ने इसे दक्कन के मध्ययुगीन मंदिरों की आकाशगंगा में सबसे चमकीला तारे के रूप में खूबसूरत वर्णन किया है।
भारत में मंदिर निर्माण की तीन प्रकार की शैली हैं जिसके आधारित पर मंदिरों का निर्माण किया जाता है।
1. द्रविण शैली –
प्रायः इस प्रकार के मंदिरों का निर्माण कृष्णा नदी से कन्याकुमारी तक किया गया है।
इस प्रकार के मंदिरों की प्रमुख विशेषता यह है कि इस प्रकार के मंदिरों में चहारदीवारी, गोपूरम (प्रवेशद्वार), पिरामिडनुमा शिखर, अष्टकोणीय गर्भगृह (रथ) या वर्गाकार संरचनानुमा विशाल प्रांगण का निर्माण किया जाता था।
2. नागर शैली –
इस प्रकार के मंदिरों का विस्तार प्रायः हिमालय से लेकर विंध्य पर्वत श्रेणी तक माना जाता है इस प्रकार के मंदिरों की मुख्य विशेषतायें यह है कि विशाल चबूतरे, ऊँचा शिखर एवं आधार से लेकर ऊपर शिखर तक चतुषकोशीय संरचनानुमा गुम्बद देखने को मिला है। इन मंदिरों को ओडिशा में कलिंग, हिमालयी क्षेत्रों में पार्वतीय एवं गुजरात में लाट कहा गया है।
3. बेसर शैली –
यह मंदिर विंध्याचल पर्वत श्रेणी से लेकर कृष्णा नदी तक हैं और इस प्रकार के मंदिर मुख्यरूप से द्रविण शैली एवं नागर शैली का मिश्रित रूप है तथा इस प्रकार की मंदिरों की मुख्य विशेषता यह थीं गुम्बद गोल या अर्द्धगोलाकार बनाये जाते थे। आपको बता दें कि इस मंदिर की शैली को चालूक्य शैली के नाम से भी जाना जाता है।
Dholavira in World Heritage Site – धौलावीरा युनेस्को की विश्व धरोहर
हाल ही में यूनेस्को की विश्व धरोहर में धौलावीरा को शामिल किया गया है। इस प्रकार अभी 39वें विश्व धरोहर के बारे में हमने आपसे बताया और 40वें स्थान पर धौलावीरा को UNESCO World Heritage Site में जोड़ा गया है भारत में अबतक इसे लेकर कुल 40 विश्व धरोहर में शामिल भारतीय स्थल हैं। धौलावीरा गुजरात में हड़प्पा युग का एक महानगर है जिसे युनेस्को की विश्व विरासत की सूची में शामिल किया गया है। इसकी बधाई UNESCO ने ट्विटर पर दी।
इसे पढ़ें….
!! जय हिन्द !!